अनजानी सी ...
कुछ खोई खोई
अपने सपनों में
अपनी मुश्कान में
अपने ही ख्यालों में
अनजानी सी ....
आवाज में वह नमी है
और पहचान भर बातें
दूर से छूती है दिल को
और लहराते बालो को सँभालते
गुजर जाती है
अपनी एक अंजान पहचान छोड़ कर
कोई नाम नहीं
कोई अनाम भी नहीं
कुछ सुहाने लम्हों को छोड़ जाती है वह .....
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Haresh Parmar